Bangladesh Violence:बांग्लादेश के राजनीतिक हालात एक बार फिर अशांत हो गए हैं। देश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के गृहनगर गोपालगंज में बुधवार को छात्रों के नेतृत्व वाली नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) की रैली के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। घटना के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है और हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं।यह झड़प एनसीपी समर्थकों और सुरक्षा बलों के साथ-साथ शेख हसीना समर्थकों के बीच हुई। बताया जा रहा है कि रैली शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुई थी, लेकिन कुछ ही देर में हालात बिगड़ गए और पत्थरबाजी, लाठीचार्ज और आगजनी जैसी घटनाएं सामने आईं। हिंसा के दौरान कई लोग घायल भी हुए हैं, जिन्हें स्थानीय अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
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शेख मुजीब की विरासत पर तनाव
शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें ‘बंगबंधु’ के नाम से जाना जाता है, बांग्लादेश के संस्थापक नेता थे। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना उनकी बेटी हैं और लंबे समय तक बांग्लादेश की सत्ता में रह चुकी हैं। पिछले साल हुए छात्रों के नेतृत्व वाले जन आंदोलन के कारण अगस्त में हसीना सरकार को सत्ता से हटना पड़ा था।उस आंदोलन की अगुवाई करने वाले छात्र नेताओं ने इस साल फरवरी में नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नाम से एक नया राजनीतिक दल बनाया। एनसीपी का दावा है कि वह युवाओं की आकांक्षाओं को स्वर देने के लिए बनी है और देश में पारदर्शी एवं जनोन्मुखी शासन व्यवस्था लाना चाहती है।
मोहम्मद यूनुस ने अवामी लीग को ठहराया हिंसा का जिम्मेदार
वर्तमान में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने इस हिंसा के लिए पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग और उसके समर्थकों को जिम्मेदार ठहराया है। यूनुस ने एक आधिकारिक बयान में कहा:“गोपालगंज में हुई यह हिंसा लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है। एनसीपी की शांतिपूर्ण रैली को जिस तरह से दबाया गया, वह दर्शाता है कि कुछ ताकतें अब भी बांग्लादेश में लोकतंत्र को नहीं स्वीकारना चाहतीं।”उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिया है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और कानून व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाए।
बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता पर चिंता
बांग्लादेश में हाल ही में राजनीतिक अस्थिरता और छात्रों की बढ़ती भागीदारी ने देश को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। खासकर युवा वर्ग, जो अब संगठित होकर राजनीति में उतर रहा है, उसे दबाने की हर कोशिश सामाजिक टकराव को जन्म दे रही है। एनसीपी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, जिससे पूर्व सत्ताधारी दलों की चिंताएं और बढ़ गई हैं।