Arvind Kejriwal: दिवाली (Diwali) का त्यौहार जैसे ही नजदीक आता है, पटाखों के इस्तेमाल को लेकर बहस का दौर शुरू हो जाता है. सरकार और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) दिवाली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा चुके हैं, लेकिन हिंदू संगठनों का आरोप है कि नैतिक जिम्मेदारी केवल हिंदू त्यौहारों पर ही क्यों थोपी जाती है. इस पर आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बयान आया है. अरविंद केजरीवाल ने मीडिया से कहा कि यह सिर्फ दीपावली का मामला नहीं है, बल्कि यह सभी के स्वास्थ्य का सवाल है. उन्होंने स्पष्ट किया कि इसमें किसी भी धर्म का मामला नहीं है, बल्कि यह सभी की सांसों की सुरक्षा का मामला है.
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बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का बयान
इस मामले में बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri) का भी बयान चर्चा में रहा. उन्होंने लोगों से दिवाली पर धूमधाम से पटाखे फोड़ने की अपील की और सवाल उठाया कि बकरीद जैसे अन्य त्यौहारों पर क्यों सवाल नहीं उठते. उन्होंने कहा कि ऐसे सवाल उठाने वालों के खिलाफ वे सुतली बम रख देंगे, जिससे उनका तेवर साफ नजर आया.
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कड़े कदम
आपको बता दे कि, दिल्ली सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए पहले से ही कई कदम उठाए हैं. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Gopal Rai) ने बताया कि अब तक 19,005 किलोग्राम पटाखे जब्त किए जा चुके हैं और पटाखों के भंडारण और बिक्री को लेकर 79 मामले दर्ज किए गए हैं. प्रदूषण नियंत्रण के लिए 377 टीमों को दिल्ली में तैनात किया गया है, जो पटाखों पर पाबंदी सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही हैं.
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दिल्ली पुलिस की भूमिका
दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की 300 और राजस्व विभाग की 77 टीमों ने मिलकर इन पटाखों की जब्ती का कार्य किया. इसके साथ ही, रेसीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, बाजार समितियों और धार्मिक संगठनों के साथ बैठकें आयोजित की जा रही हैं, ताकि पटाखों के खिलाफ जागरूकता फैलाई जा सके. इसके अलावा, लोगों को जागरूक करने के लिए “दिया जलाओ, पटाखा नहीं” नामक अभियान भी शुरू किया गया है, ताकि पर्यावरण को साफ रखने के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी संरक्षित किया जा सके.
हर साल दिवाली (Diwali) के अवसर पर पटाखों पर पाबंदी को लेकर बहस होना आम हो गया है. इस बार भी, पटाखों पर लगे प्रतिबंध के मुद्दे पर विभिन्न नेताओं और धार्मिक संगठनों ने अपने-अपने विचार रखे हैं. जबकि कुछ लोग इसे धर्म से जोड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार और पर्यावरण संगठन इसे स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से जरूरी मानते हैं.