आज मनाया जा रहा बकरीद का त्योहार, जानिए कुर्बानी के पीछे की वजह

Aanchal Singh
By Aanchal Singh

Eid al-Adha 2024: इस्लाम धर्म में ईद उल अजहा, जिसे बकरीद या बकरा ईद भी कहा जाता है, दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. यह त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ज़िलहिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इस दिन मुसलमान ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण दिखाने के लिए बकरे की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और तीसरा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए.

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आज मनाया जा रहा बकरीद का त्योहार

बताते चले कि इस वर्ष, ईद उल अजहा 17 जून को मनाई जा रही है, इस दिन को विशेष प्रार्थनाओं, कुर्बानी, और एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटने के रूप में मनाया जाता है. यह त्योहार ईश्वर के प्रति आस्था, बलिदान, और समाज के प्रति दया और करुणा की भावना को दर्शाता है. इस्लामिक कैलेंडर में कुल 12 महीने होते हैं, और इसका अंतिम महीना धुल हिज्जा कहलाता है. धुल हिज्जा महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार रमजान के महीने के समाप्त होने के लगभग 70 दिनों बाद आता है.

इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व

बकरा ईद को वैश्विक स्तर पर बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, और इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के अनुसार, अल्लाह ने एक बार हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही और उन्हें आदेश दिया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह के लिए कुर्बान करें. हजरत इब्राहिम के लिए उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे प्यारे थे. अल्लाह के हुक्म का पालन करते हुए, हजरत इब्राहिम ने यह बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. हजरत ईस्माइल ने भी अल्लाह की इच्छा को स्वीकार करते हुए अपनी कुर्बानी देने के लिए सहमति जताई. जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उनकी सच्ची निष्ठा और समर्पण को देखकर उनके बेटे की जगह एक मेढ़े (राम) को कुर्बानी के लिए भेज दिया.

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ईद के दिन जानवरों की कुर्बानी क्यों देते ?

इस घटना को याद करते हुए, मुसलमान बकरा ईद के दिन जानवरों की कुर्बानी देते हैं. यह त्योहार बलिदान, निष्ठा, और अल्लाह के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक हिस्सा अपने परिवार के लिए, दूसरा दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए, और तीसरा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए. इस प्रकार, यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है बल्कि सामाजिक एकता और सहयोग का भी प्रतीक है.

कौन थे हजरत इब्राहिम?

हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी, जिससे उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था. लेकिन जब अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का आदेश दिया, तो उन्होंने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुना. हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत ईस्माइल को इस आदेश के बारे में बताया, और हजरत ईस्माइल ने इसे सहर्ष स्वीकार किया. जब हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चलाई, तो उन्होंने देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह एक बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा है. यह दृश्य देखकर हजरत इब्राहिम ने समझा कि यह अल्लाह की इच्छा थी और उन्होंने उनकी निष्ठा और समर्पण की परीक्षा ली थी.

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कब से शुरु हुई कुर्बानी देने की परंपरा?

इस घटना के बाद से अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई. यह कहानी इस्लाम में बलिदान, विश्वास, और अल्लाह के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है. ईद उल अजहा के अवसर पर मुसलमान जानवरों की कुर्बानी देकर इस परंपरा को निभाते हैं और इस्लामी आस्था के इन मूल्यों का स्मरण करते हैं. दुनिया भर में मुस्लिम लोग ईद उल अजहा को बहुत धूमधाम के साथ मनाते हैं. इस दिन का जश्न खास धार्मिक और सामाजिक परंपराओं के साथ मनाया जाता है:

सुबह की शुरुआत: सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें.

नमाज अदा करना: इसके बाद अल्लाह को नमाज अदा करें. यह ईद की विशेष नमाज होती है, जो आमतौर पर मस्जिद में सामूहिक रूप से अदा की जाती है.

पारंपरिक कपड़े: नमाज के लिए साफ और पारंपरिक कपड़े पहनें.

कुर्बानी की रस्में: नमाज के बाद परिवार के बड़े लोग कुर्बानी की रस्में अदा करते हैं. इस दौरान जानवर की कुर्बानी दी जाती है, जो अल्लाह के प्रति निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है.

अल्लाह के प्रति आभार: कुर्बानी के बाद अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता है।

शुभकामनाएं देना: इसके बाद अपने प्रियजनों और रिश्तेदारों को ईद की मुबारकबाद दें।

जरूरतमंदों की सहायता: कुर्बानी के मांस का एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है. इसके अलावा, लोगों को भोजन और नए कपड़े भी दिए जाते हैं.

ईदी देना: बुजुर्ग लोग अपने छोटों को ईदी देते हैं. ईदी आमतौर पर पैसे या तोहफे के रूप में दी जाती है और यह त्योहार की महत्वपूर्ण रस्मों में से एक मानी जाती है.

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