फिल्म उद्योग में अक्सर कुछ फिल्में आती हैं जो अपनी कंटेंट, परफॉर्मेंस, और स्टोरीलाइन के कारण दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पातीं। हाल ही में आई फिल्म “आज़ाद” भी कुछ ऐसी ही फिल्म साबित हुई है। इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में राशा ठडानी और आमन देवगन जैसे युवा अभिनेता हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा को फिल्म की पुरानी और बासी कहानी के आगे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया है।

फिल्म की पटकथा
“आज़ाद” एक ड्रामा फिल्म है, जो स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के मुद्दे पर आधारित है। फिल्म की कहानी एक ऐसे युवक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है और अपने परिवार की उम्मीदों के खिलाफ जाकर अपनी राह खुद चुनता है। हालांकि, फिल्म का कथानक कहीं न कहीं पुराने बॉलीवुड फिल्मों के टेम्प्लेट से मेल खाता है, जिसमें मुख्य पात्र एक संघर्षशील व्यक्ति होता है, जो खुद को साबित करने के लिए समाज और परिवार के नियमों को चुनौती देता है।

लेकिन कहानी में जो कमी महसूस होती है, वह है इसका प्रेजेंटेशन। फिल्म की दिशा और पटकथा में कोई नयापन नहीं है। फिल्म की थीम तो मजबूत हो सकती थी, लेकिन इसके execution में कोई भी नया दृष्टिकोण नहीं दिखाया गया। अधिकांश सीन इतने क्लिच्ड हैं कि दर्शकों को लगेगा जैसे वे एक पुरानी फिल्म देख रहे हों, जो पूरी तरह से आउटडेटेड हो चुकी हो।
परफॉर्मेंस से दर्शकों को बांधने में पूरी तरह से नाकाम
राशा ठडानी और आमन देवगन दोनों ही अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन उन्हें इस फिल्म में एक अच्छी और चुनौतीपूर्ण भूमिका नहीं मिल पाई। राशा ठडानी ने अपनी भूमिका में कुछ नया करने की कोशिश की, लेकिन फिल्म के कमजोर स्क्रिप्ट और निर्देशन के कारण उनका अभिनय प्रभावी नहीं बन पाया। वह फिल्म में पूरी तरह से कंफ्यूज और सीमित दिखाई दीं।

आमन देवगन भी अपनी भूमिका में उतने ही कमजोर नजर आए। उनका अभिनय बिना गहरे इमोशन के था, और फिल्म में कोई दमदार संवाद या दृश्य नहीं था, जिससे वह अपनी मौजूदगी महसूस करा पाते। उनकी परफॉर्मेंस दर्शकों को बांधने में पूरी तरह से नाकाम रही। दोनों के लिए यह फिल्म एक बड़ा मौका था, लेकिन बेमेल पटकथा और निर्देशन के कारण यह मौका चूक गया।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष

फिल्म का निर्देशन भी साधारण और बिना किसी विशिष्टता के था। निर्देशक ने शायद अपनी पूरी कोशिश की होगी, लेकिन स्क्रिप्ट और कलाकारों के लिए कोई गाइडेंस या दिशा स्पष्ट नहीं थी। फिल्म के दृश्य भी उतने ही बासी और थकाऊ थे, और सिनेमाटोग्राफी में कोई खास कमी नहीं थी, लेकिन फिल्म की सिनेमेटिक अपील भी कहीं खो गई थी। फिल्म के संवाद भी अधिकतर साधारण थे, और कुछ संवाद तो इतने अप्रभावी थे कि वे कहानी के प्रवाह को ही तोड़ देते थे।
संगीत और गीत नहीं बन पाया यादगार

“आज़ाद” का संगीत भी पूरी फिल्म की तरह ही औसत था। कोई गाना इतना यादगार नहीं बन पाया जो दर्शकों के दिल में जगह बना सके। फिल्म के संगीत में कोई नया प्रयोग या ताजगी नजर नहीं आई, जो कि फिल्म के गाने को दर्शकों के बीच लोकप्रिय बना सके। गाने एक तरह से बस फिल्म के भीतर के दृश्य को भरने के लिए डाले गए थे, लेकिन इनका फिल्म के टोन और स्टोरी से कोई खास मेल नहीं था।
फिल्म की कहानी में गहराई की कमी
फिल्म की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी कहानी और दिशा पूरी तरह से पिछड़ी हुई हैं। कहानी में गहराई की कमी है और फिल्म की गति बहुत धीमी है, जो दर्शकों को बोर कर सकती है। इसमें किसी प्रकार की रोमांचक स्थिति या दिलचस्प मोड़ नहीं हैं, जो फिल्म को आगे बढ़ने की ऊर्जा दे सके। इसकी पटकथा में भी नया कुछ नहीं है, और यह फिल्म एक बार देखने के बाद आसानी से भूलने लायक हो जाती है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि फिल्म में जो विषय उठाए गए हैं, जैसे स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, और परिवार के दबाव, उन्हें सही तरीके से नहीं पेश किया गया। ये विषय तो बहुत प्रभावशाली हो सकते थे, लेकिन फिल्म इनको बिना किसी गहराई और विश्लेषण के दर्शाती है, जिससे यह दर्शकों पर असर डालने में पूरी तरह से नाकाम रहती है।
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फिल्म की कमजोर स्क्रिप्ट
“आज़ाद” एक ऐसी फिल्म है जो अपनी टीम की पूरी मेहनत और मेहनती कलाकारों के बावजूद दर्शकों को कोई खास अनुभव नहीं दे पाती। राशा ठडानी और आमन देवगन की प्रतिभा को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, और फिल्म की कमजोर स्क्रिप्ट और निर्देशन के कारण यह एक बासी और पुरानी फिल्म बनकर रह गई है। अगर आप कुछ नया और दिलचस्प देखने की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं करेगी।अंत में, “आज़ाद” एक ऐसी फिल्म है जिसे आप आसानी से भूल सकते हैं, और जो दर्शकों के समय और पैसे के लिहाज से पूरी तरह से निराशाजनक साबित होती है।