बेंगलुरू में हुए AI इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड केस में आरोपी निकिता सिंघानिया, उसकी मां निशा सिंघानिया और भाई अनुराग सिंघानिया को बेंगलुरू के सिटी सिविल कोर्ट से जमानत मिल गई है। तीनों ने पहले सत्र अदालत में जमानत की याचिका लगाई थी, जिसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने सत्र अदालत को जल्द फैसले का निर्देश दिया था।
आज, सिटी सिविल कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इन आरोपियों को राहत दी और जमानत का आदेश दिया।यह मामला तब सामने आया था जब अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर को आत्महत्या कर ली थी। अतुल ने एक 40 पन्नों का सुसाइड नोट और 90 मिनट का वीडियो छोड़ा था, जिसमें उसने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था। पुलिस ने आरोपियों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

मानसिक उत्पीड़न का आरोप
अतुल ने अपने सुसाइड नोट और वीडियो में अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जो मानसिक हिंसा का रूप हो सकता है। मानसिक उत्पीड़न, जो शारीरिक हिंसा से कहीं ज्यादा जटिल और छुपा हुआ होता है, कई बार पीड़ित को अपनी स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाता। अतुल के द्वारा लगाए गए आरोपों को अगर सही साबित किया जाता है, तो यह एक महत्वपूर्ण संदेश होगा कि मानसिक उत्पीड़न को उतनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए जितना शारीरिक हिंसा को लिया जाता है।

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सुसाइड नोट और वीडियो
अतुल का सुसाइड नोट और वीडियो एक बेहद शक्तिशाली गवाह हैं। इन दोनों दस्तावेजों के आधार पर अदालत में मामले की सुनवाई होगी। जब एक व्यक्ति आत्महत्या करने से पहले इतना विस्तार से अपनी कहानी लिखता है और रिकॉर्ड करता है, तो इसे मानसिक उत्पीड़न के प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। यह भी साबित करता है कि उसे खुद को इस स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला, जिससे उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति बहुत खराब हो गई थी।

मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू हिंसा
इस मामले ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या समाज और कानून मानसिक उत्पीड़न को उसी गंभीरता से देखता है जैसे शारीरिक हिंसा को? मानसिक उत्पीड़न के कारण कई बार व्यक्तियों को गंभीर मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जो आत्महत्या जैसे घातक परिणामों तक पहुंच सकता है। अतुल का सुसाइड नोट इस बात का प्रतीक है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर और ज्यादा जागरूकता और सहानुभूति की आवश्यकता है।