बेंगलुरु के टेक इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद उनके चार साल के बेटे की कस्टडी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अतुल सुभाष का बेटा अपनी मां, निकिता सिंघानिया, के पास रहेगा। अतुल सुभाष की मां ने पोते की कस्टडी की मांग की थी, जबकि निकिता सिंघानिया ने बेटे की कस्टडी की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए कस्टडी मां को देने का निर्णय लिया।
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अतुल सुभाष की आत्महत्या और परिवारिक विवाद
अतुल सुभाष, जो कि बेंगलुरु के एक टेक इंजीनियर थे, दिसंबर 2024 में आत्महत्या कर ली थी। उनकी आत्महत्या के पीछे उन्होंने अपनी पत्नी और उसके परिवार पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। उन्होंने अपने डेथ नोट में 24 पन्नों पर अपनी पीड़ा और आरोपों का उल्लेख किया था। इस घटना ने उनके परिवार में एक बड़े विवाद को जन्म दिया, खासकर उनकी मां और पत्नी के बीच। आत्महत्या के बाद, उनके चार साल के बेटे की कस्टडी को लेकर संघर्ष शुरू हो गया था, क्योंकि दोनों पक्षों (अतुल की मां और पत्नी) ने बच्चे की कस्टडी का दावा किया था।

कस्टडी के मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख
अतुल सुभाष की मां निशा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपने पोते की कस्टडी देने की मांग की थी। उनका दावा था कि बच्चे के लिए सबसे अच्छा माहौल वही हो सकता है, जो एक दादी के घर में हो, जहां वह प्यार और देखभाल के साथ बड़ा हो सके। वहीं, अतुल सुभाष से अलग रहीं उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया ने भी बेटे की कस्टडी की मांग की थी। निकिता का तर्क था कि वह ही अपने बेटे की सबसे बेहतर देखभाल कर सकती हैं, क्योंकि वह पहले से ही बच्चे के साथ रह रही थीं और उसे अपने साथ बेंगलुरु ले जाने की योजना भी बना रही थीं।इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, और अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि बच्चे के हित में सबसे उचित निर्णय लिया जाए। अदालत ने विशेष रूप से बच्चे की मानसिक स्थिति और उसकी भलाई को ध्यान में रखते हुए, इस मामले में अंतिम निर्णय लिया।
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बच्चे से बातचीत और फैसले का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पर फैसला सुनाने से पहले, उसके साथ वीडियो लिंक के माध्यम से बातचीत की। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने करीब 45 मिनट तक बच्चे से बात की, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे की भावनात्मक और मानसिक स्थिति को समझा जा सके। अदालत ने यह कदम उठाया ताकि बच्चे का पक्ष भी सुनने में आ सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसे किसके साथ रहना बेहतर होगा।इस बातचीत में बच्चे की पहचान छिपाने के लिए कोर्ट की कार्यवाही को ऑफलाइन किया गया था। अदालत ने बच्चे से पूछा कि वह कहां रहना चाहता है, और उसे किसके साथ सुरक्षित महसूस होता है। बच्चे की बातचीत से यह स्पष्ट हुआ कि वह अपनी मां के पास रहना चाहता था, जो कि उसकी देखभाल कर रही थी और उसे प्यार और सुरक्षा का अहसास दिला रही थी।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि, बच्चे की कस्टडी उसकी मां निकिता सिंघानिया को दी जाए। अदालत ने यह निर्णय लिया कि बच्चे की भलाई के लिए उसकी मां के पास रहना सबसे उचित होगा। अदालत ने कहा कि बच्चे को उसके माता-पिता में से सबसे उपयुक्त व्यक्ति के पास रहना चाहिए, जो उसे सही तरीके से देखभाल और प्यार दे सके।अदालत ने यह भी कहा कि बच्चे की भावनात्मक और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया कि उसे अपनी मां के साथ रहना चाहिए। अदालत ने निकिता सिंघानिया के वकील के दावे को भी माना कि वह बच्चे को बेंगलुरु ले जाएंगी और उसकी देखभाल का पूरा ध्यान रखेंगी।