AC Temperature: देश में भीषण गर्मी और हीटवेव के चलते केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार को बताया कि एयर कंडीशनर (AC) के तापमान को अब सीमित करने की योजना पर काम शुरू हो गया है। इस नई नीति के तहत देश में किसी भी एसी को 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे ठंडा नहीं किया जा सकेगा। सरकार इसे जल्द ही पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करेगी।
कंपनियों को बदलना होगा डिफॉल्ट सेटिंग
मंत्री खट्टर के अनुसार, सरकार एसी के ऑपरेटिंग तापमान को 20°C से 28°C के बीच मानकीकृत करने की योजना बना रही है। इस कदम से न केवल अत्यधिक बिजली खपत पर लगाम लगेगी, बल्कि एसी उपयोग में एकरूपता भी आएगी। अभी तक बाजार में उपलब्ध अधिकांश एसी 16°C या 18°C तक ठंडक प्रदान करते हैं, लेकिन नई नीति के तहत यह न्यूनतम सीमा अब 20°C कर दी जाएगी। वहीं हीटिंग मोड में तापमान 28°C से ऊपर नहीं जा सकेगा।
घरेलू और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों पर होगा असर
नई नीति का प्रभाव घरेलू और व्यावसायिक दोनों तरह के उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। सरकार इसे पहले प्रयोग के तौर पर कुछ क्षेत्रों में लागू करेगी और फिर उसके नतीजों का मूल्यांकन किया जाएगा। इससे भविष्य में व्यापक स्तर पर नीति को लागू करने में मदद मिलेगी। इस कदम का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय बिजली ग्रिड पर बढ़ते लोड को कम करना और ऊर्जा बचत को प्रोत्साहित करना है।
ऊर्जा खपत में आएगी बड़ी कमी
ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) के अनुसार, यदि एसी का तापमान केवल कुछ डिग्री बढ़ा दिया जाए, तो भारी मात्रा में ऊर्जा की बचत संभव है। वर्तमान में भारत में अधिकतर लोग अपने एसी को 20–21°C पर चलाते हैं, जबकि BEE की सिफारिश है कि आदर्श तापमान 24°C होना चाहिए। 2020 में जारी दिशानिर्देशों के मुताबिक, घरों और कारों में 24°C और व्यावसायिक भवनों में 24–25°C का तापमान उपयुक्त माना गया है।
प्रति डिग्री तापमान बढ़ाने पर 6% तक बिजली की बचत संभव
रिपोर्ट के अनुसार, यदि एसी के तापमान को 20°C से 24°C तक बढ़ाया जाए, तो बिजली खपत में 24% तक की कमी आ सकती है। इतना ही नहीं, हर 1°C तापमान बढ़ाने पर लगभग 6% बिजली की बचत होती है। ऐसे में यह नीति न केवल ऊर्जा संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि इससे बिजली की मांग को संतुलित करने में भी सहायता मिलेगी।
सरकार का यह कदम आने वाले समय में ऊर्जा संकट को टालने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो इसे पूरे देश में अनिवार्य किया जा सकता है, जिससे दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
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