Mahakumbh: तीर्थराज प्रयाग और ऋतुराज वसंत के पावन संगम पर अमृत स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। इस विशेष अवसर पर लाखों लोग संगम में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति की कामना कर रहे हैं। सूर्योदय से पहले ही कल्पवासियों ने पुण्य लाभ लिया और दोपहर 11:53 के बाद मुहूर्त की प्रतीक्षा समाप्त हुई। इस दौरान श्रद्धालुओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जो रात्रि आठ बजे तक 1 करोड़ 29 लाख तक पहुँच गई। प्रशासन का अनुमान है कि सोमवार को लगभग पांच करोड़ श्रद्धालु स्नान करेंगे।
संगम की ओर बढ़ते श्रद्धालु, आस्था का अद्वितीय उत्सव

संगम के मार्ग पर हर श्रद्धालु के चेहरे पर आस्था का अद्भुत वेग नजर आ रहा था। त्रिवेणी तट पर भक्त सूर्य की लालिमा में दमकते हुए पीतांबर पहनकर स्नान के लिए पहुँचे। वासंतिक माहौल में हर घाट संगम का प्रतीक बन रहा था और हर डुबकी में मोक्ष की संतुष्टि की भावना झलक रही थी। 12 किलोमीटर क्षेत्र में फैले 44 घाटों पर श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। कई श्रद्धालुओं ने तीन, सात और ग्यारह डुबकियों का पुण्य प्राप्त किया। घाटों पर तैनात जल पुलिस ने भी कई श्रद्धालुओं को स्नान के बाद बाहर निकलने के लिए कहा, ताकि सभी श्रद्धालुओं को स्नान का अवसर मिल सके।
स्नान के बाद आस्था की गहराई में डूबते श्रद्धालु

डुबकी के बाद श्रद्धालु गंगा मैया के समक्ष श्रद्धा भाव से सिर झुका रहे थे। उनके चेहरों पर देव दर्शन और संत दर्शन की आकांक्षा स्पष्ट रूप से झलक रही थी। इस दिन के महत्व को और गहरे तरीके से महसूस किया गया, जब श्रद्धालु अक्षयवट और लेटे हनुमानजी तक पहुँचने के मार्ग पर आस्था और भक्ति से भरे हुए थे। श्रद्धालुओं ने अपने जीवन के सर्वोत्तम पुण्य के लिए इस अवसर का लाभ उठाया।
कुंभ की अनोखी परंपरा: सनातन धर्म का वैश्विक संदेश

कुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति और आस्था का शंखनाद है। संत सीतारमण ने कहा कि कुंभ के भाव में गोते लगाकर हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और समाज के संचालन के लिए आवश्यक संदेश प्राप्त कर सकते हैं। यहां विभिन्न पंथों और अखाड़ों के संतों का एक ही उद्देश्य था—सर्वकल्याण और मोक्ष। वसंत पंचमी (Vasant Panchami) के दिन सनातन धर्म की एकता और विविधता का संदेश भी स्पष्ट रूप से सामने आया, जिसमें विभिन्न जाति-वर्ग के श्रद्धालु एक ही लक्ष्य के साथ इस पुण्य अवसर पर जुटे थे।
भारत की शक्ति और एकता का प्रतीक

कुंभ में न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि यह देश की समृद्धि, शक्ति, शांति, एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने की सामर्थ्य का प्रतीक भी है। हमारे पूर्वजों ने कुंभ की परंपरा को स्थापित करते हुए यह संदेश दिया कि भारत की विशेषता उसकी विविधता और एकता में है। यह संदेश वैश्विक स्तर पर फैल रहा है कि मतभिन्नता भारत की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी शक्ति है। कुंभ में श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के साथ उस दिव्य शक्ति से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो जीवन को पुण्य से भर देती है।
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