Pune में काम के बोझ तले दबी जिंदगी से परेशान 26 वर्षीय CA की गयी जान, सोशल मीडिया पर लोगों ने उठाए सवाल

Akanksha Dikshit
By Akanksha Dikshit
A 26-year-old CA in Pune committed suicide due to work pressure

Workload Stress: आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों का स्ट्रेस लेवल इस कदर बढ़ चुका है कि लोग इसमें अपनी जान तक गवा बैठ रहे है। आज के समय में कॉम्पीटीशन बहुत बढ़ चुका हर कंपनी इस रेस में आगे रहना चाहती है ये आम बात है मगर अपनी निजी जरूरतों और कंपनी के स्वार्थ के लिए वे सब एक आम एम्प्लॉयी पर इतना प्रेशर डालते है जिससे वह मानसिक तनाव में आ जाता है। ऐसे कई केस हो चुके है जिनमें अधिक वर्क लोड की वजह से लोगों ने अपनी जान दी हो।

पुणे में एक 26 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट, एना सेबेस्टियन पिरेयिल, की हाल ही में हुई दुखद मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एना, जिन्होंने मार्च 2024 में प्रतिष्ठित परामर्श कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाई) में काम करना शुरू किया था, की मां ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी पर अत्यधिक काम का दबाव डाला गया था। इस घटना ने न केवल एना के परिवार को प्रभावित किया, बल्कि पूरे कॉरपोरेट जगत में कार्यस्थल की संस्कृति पर गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।

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मां ने लिखा भावनात्मक पत्र

दरअसल, महाराष्ट्र के पुणे में एक 26 साल की युवती की मौत का मामला अचानक गंभीर मोड़ ले चुका है। जहां एक युवती पुणे की जानी मानी कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग में चार्टेड अकाउंटेंट यानि CA थी। उसकी मां ने कंपनी के मालिक को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनकी बेटी से इतना सारा काम लिया गया कि वह तनाव में आ गई थी। उसके ऊपर लगातार इतना ज्यादा काम का प्रेशर डाला जा रहा था। आखिरकार काम के बोझ में दब कर उनकी बेटी की मौत हो गई। उनकी बेटी ने मार्च 2024 में ही ईवाई पुणे नौकरी जॉइन की थी।

एना की मां, अनिता ऑगस्टिन, ने अपने दुखद अनुभव को साझा करते हुए एक पत्र लिखा, जिसे सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से शेयर किया गया। उन्होंने लिखा, “एना ने नवंबर 2023 में सीए की परीक्षा पास की थी और वह अपनी पहली नौकरी से बेहद खुश थी। केवल चार महीने में ही उसकी मौत ने मेरे जीवन को तहस-नहस कर दिया।” उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बेटी को इतनी अधिक जिम्मेदारियों के तहत रखा गया कि वह मानसिक तनाव का सामना नहीं कर पाई।

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कंपनी ने अपनी सफाई में दिया बयान

इस घटना के बाद, ईवाई ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि वे इस दुखद घटना से बेहद दुखी हैं। कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि वे कर्मचारियों के कल्याण को प्राथमिकता देते हैं और कार्यस्थल की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। हालांकि, इसके बावजूद, अनिता का आरोप था कि कंपनी ने एना के अंतिम संस्कार में भी कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा, जिससे उनके दुख और बढ़ गया। ईवाई ने आगे कहा कि, ‘हम इस साल जुलाई में 26 साल की एना सेबेस्टियन पिरेयिल के दुखद और असामयिक निधन से बहुत दु;खी हैं।

हमारी संवेदनाएं परिवार के साथ है, कंपनी ने आगे कहा कि, ‘हालांकि कोई भी मदद परिवार को हुए नुकसान की भरपाई नहीं करसकती है। फिर भी हमने हरसंभव सहायता देंगे, जैसा कि हम मुसीबत के समय में करते हैं और समय के साथ आगे भी करते रहेंगे।’

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सोशल मीडिया पर फूटा लोगों का गुस्सा

इस मामले ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है। कई उपयोगकर्ताओं ने कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य और काम के बोझ के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। कुछ ने इसे कॉरपोरेट संस्कृति में काम की अधिकता की समस्या से जोड़ते हुए इसे सुधारने की मांग की है। एक यूजर ने लिखा, “देर तक काम करने की संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कंपनियों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।”

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कार्यस्थल बढ़ता मानसिक दबाव

अनिता ने अपने पत्र में कहा कि उनकी बेटी की मौत एक चेतावनी होनी चाहिए ताकि अन्य परिवार इस तरह के दुख से बच सकें। उन्होंने कंपनी की कार्य संस्कृति में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है, जिससे युवा पेशेवरों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का सामना न करना पड़े। यह घटना न केवल एना के परिवार के लिए बल्कि सभी उन युवाओं के लिए एक सन्देश है जो इस प्रकार के कार्यस्थल की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

यह घटना केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे समय में सामने आई है जब हम सभी को काम के बोझ और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। एना की मां के शब्दों में दर्द और चिंता स्पष्ट है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारी कार्यसंस्कृति हमें सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए बनाई गई है या नहीं।

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कॉर्पोरेट सेक्टर में परिवर्तन की आवश्यकता

कॉरपोरेट जगत में इस प्रकार की घटनाओं से स्पष्ट होता है कि काम के माहौल में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी और परिवार को इस तरह के दुख का सामना न करना पड़े। आज पूरे देश का युवा इस दौर से गुजर रहा है।

पैसे कमाने और स्टेटस बनाने की इस दौड़ में लोग अपना मानसिक स्वास्थ्य दांव पर लगा रहे है और कॉर्पोरेट जगत की ये कंपनियां इस बात का ख्याल न रखते हुए उनसे लगातार काम कराती रहती है। ग्लोबल थिंक टैंक यूकेजी वर्कफोर्स इंस्टीट्यूट द्वारा मार्च 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 78% कर्मचारी बर्नआउट की समस्या से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि काम का दबाव और तनाव कितनी गंभीरता से बढ़ रहा है।

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वेतन और वर्कलोड का एक निराशाजनक समीकरण

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि 64% कर्मचारियों का मानना है कि अगर थोड़ी सी सैलरी कटवाने पर उनका वर्कलोड कम हो सके, तो उन्हें इस पर कोई समस्या नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कई लोग मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए काम के बोझ को कम करना चाहते हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है, जहां कार्य सप्ताह सबसे लंबा होता है। एक औसत भारतीय कर्मचारी हफ्ते में लगभग 48 घंटे काम करता है, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा करीब 37 घंटे और यूके में 36 घंटे है।

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लेबर लॉ की सच्चाई

भारत में लेबर लॉ हफ्ते में 48 घंटे काम करने की अनुमति देता है, लेकिन कॉर्पोरेट सेक्टर की स्थिति इससे कहीं अधिक चिंताजनक है। खासकर वर्क फ्रॉम होम के दौरान काम के घंटे लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिससे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस प्रकार, ये आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि भारतीय कार्यस्थल पर बर्नआउट एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अधिक समर्थन और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन की आवश्यकता है।

इस दुखद घटना ने हम सभी को एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करने के लिए मजबूर किया है: क्या हम काम और जीवन के बीच एक संतुलन बना पा रहे हैं? हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारी कार्यसंस्कृति स्वस्थ और सहायक हो। काम करते हुए भी मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल की स्थिति को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक मुद्दा है जो सभी को प्रभावित करता है। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम एक बेहतर, स्वस्थ और सहायक कार्यक्षेत्र का निर्माण कर सकते हैं।

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