2006 Mumbai Train Bombings:मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों (Mumbai Train Blast) से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित किया है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में 11 जुलाई 2006 को हुए इन बम धमाकों के 11 दोषियों को बरी कर दिया था। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित करते हुए स्पष्ट किया कि इन आरोपियों को फिलहाल जेल भेजने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन्हें निर्दोष भी नहीं माना जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है और कहा है कि इस फैसले का इस्तेमाल अन्य मामलों में नजीर (precedent) के रूप में नहीं किया जा सकता।
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सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला MCOCA (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) के तहत चल रहे अन्य मामलों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस निर्णय को चुनौती नहीं दी गई, तो यह दूसरे मामलों में दोषियों को लाभ पहुंचा सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को गंभीरता से लेते हुए स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट का निर्णय विशेष रूप से इसी मामले तक सीमित रहेगा और इसका दूसरे केसों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय करते हुए मामले की पूर्ण सुनवाई की जरूरत पर भी जोर दिया है।
2006 का मुंबई ट्रेन बम धमाका
- 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इन धमाकों में 209 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह हमला मुंबई के जीवनधारा मानी जाने वाली लोकल ट्रेनों को निशाना बनाकर किया गया था।
- NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) और अन्य जांच एजेंसियों ने लंबी जांच के बाद 11 लोगों को दोषी ठहराया था। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इन्हीं 11 लोगों में से कुछ को बरी करने का आदेश दिया था। जानकारी के अनुसार,
- 4 आरोपी नागपुर जेल में बंद थे
- 4 अमरावती जेल में थे
- एक आरोपी की नागपुर जेल में मौत हो चुकी है
- 2 आरोपियों को रिहा कर दिया गया है
- 1 आरोपी अभी भी जेल में है क्योंकि उस पर एक अन्य मामला लंबित है
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित रुख
सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि जिन आरोपियों को रिहा किया गया है, उन्हें तत्काल गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, लेकिन यह न माने कि वे दोषमुक्त हैं। कोर्ट का यह रुख यह दर्शाता है कि वह कानून की निष्पक्षता और न्याय की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए निर्णय दे रहा है।